
मारिवि चूरिवि जीवडा जं तुहुँ दुक्खु करीसि ।
तं तह पासि अणंत-गुणु अवसइँ जीव लहीसि ॥126॥
मारयित्वा चूर्णयित्वा जीवान् यत् त्वं दुःखं करिष्यसि ।
तत्तदपेक्षया अनन्तगुणं अवश्यमेव जीव लभसे ॥१२६॥
अन्वयार्थ : [जीव यत् त्वं] हे जीव, जो तू [जीवान् मारयित्वा] जीवों को मारकर, [चूरयित्वा] चूरकर [दुःखं करिष्यसि] दुःखी करता है, [तत्] उसका फल [तदपेक्षया] उसकी अपेक्षा [अनंतगुणं] अनंतगुणा [अवश्यमेव] निश्चय से [लभसे] पावेगा ।
Meaning : O Soul ! By killing and crushing thou causest pain to living beings : verily thou thyself shalt have to suffer infinite-fold more pain.
श्रीब्रह्मदेव