
जीव वहंतहँ णरय-गइ अभय-पदाणेँ सग्गु ।
बे पह जवला दरिसिया जहिँ रुच्चइ तहिँ लग्गु ॥127॥
जीवं घन्तां नरकगतिः अभयप्रदानेन स्वर्गः ।
द्वौ पन्थान समीपौ दर्शितौ यत्र रोचते तत्र लग्न ॥१२७॥
अन्वयार्थ : [जीवं घ्नतां नरकगतिः] जीवों को मारने से नरकगति और [अभयप्रदानेन स्वर्गः] अभयदान देने से स्वर्ग होता है, [द्वौ पन्थानौ] ये दोनों मार्ग [समीपे दर्शितौ] अपने पास दिखलाये हैं, [यत्र रोचते] जिसमें तेरी रुचि हो, [तत्र लग्न] उसी में लग ।
Meaning : By Himsa of Jivas one falls into Narka , and by the Abhaya Dana one goes to Svaraga ; both the paths lie open before thy eyes, choose whichever thou thinkest to be the best for thee.
श्रीब्रह्मदेव