
मूढा सयलु वि कारिमउ भुल्लउ मं तुस कंडि ।
सिव-पहि णिम्मलि करहि रइ घरु परियणु लहु छंडि ॥128॥
मूढ सकलमपि कृत्रिमं भ्रान्तः मा तुषं कण्डय ।
शिवपथे निर्मले कुरु रतिं गृहं परिजनं लघु त्यज ॥१२८॥
अन्वयार्थ : [मूढ] हे मूढ ! [सकलमपि कृत्रिमं] सब-कुछ ही कर्म-कृत है, [भ्रांतः तुषं मा कंडय] भ्रम से भूसे का खंडन मत कर; [निर्मले] परमपवित्र [शिवपथे रतिं कुरु] मोक्ष-मार्ग में प्रीति कर [गृहं परिजनं] और घर-परिवार आदि को [लघु त्यज] शीघ्र ही छोड़ ।
Meaning : O fool! Thou art mistaken as to the nature of acts ; do not amass husk, attach thyself to thy Nirmala Shiva-Pada and give up thy house, family, relations, and the like.
श्रीब्रह्मदेव