
जे दिट्ठा सूरुग्गमणि ते अत्थवणि ण दिट्ठ ।
तेँ कारणिं वढ धम्मु करि धणि जोव्वणि कउ तिट्ठ ॥132॥
ये द्रष्टाः सूर्योद्गमने ते अस्तगमने न द्रष्टाः ।
तेन कारणेन वत्स धर्मं कुरु धने यौवने का तृष्णा ॥१३२॥
अन्वयार्थ : [वत्स] हे शिष्य ! [ये] जो कुछ पदार्थ [सूर्योद्गमने] सूर्य के उदय होने पर [दृष्टाः] देखे थे, [ते] वे [अस्तगमने] सूर्य के अस्त होने के समय [न दृष्टाः] नहीं देखे जाते [तेन कारणेन] इस कारण [धर्मं कुरु] धर्म का पालन कर [धने यौवने] धन और यौवन में [का तृष्णा] क्यों तृष्णा करता है ।
Meaning : The light which is seen at sun-rise disappears at sun-set, therefore thou shouldst follow the Great Dharma. There is nothing really valuable in wealth and youth.
श्रीब्रह्मदेव