
ए पंचिंदिय-करहडा जिय मोक्कला म चारि ।
चरिवि असेसु वि विसय-वणु पुणु पाडहिँ संसारि ॥136॥
एते पञ्चेन्द्रियकरभकाः जीव मुक्तान् मा चारय ।
चरित्वा अशेषं अपि विषयवनं पुनः पातयन्ति संसारे ॥१३६॥
अन्वयार्थ : [एते] ये प्रत्यक्ष [पंचेन्द्रियकरभकाः] पाँच इंद्रियरूपी ऊँट हैं, उनको [स्वेच्छया] अपनी इच्छा से [मा चारय] मत चरने दे, क्योंकि [अशेषं] सम्पूर्ण [विषयवनं] विषय-वन को [चारयित्वा] चरके [पुनः] फिर ये [संसारे] संसार में ही [पातयंति] पटक देंगे ।
Meaning : O Soul ! Do not graze the camels of thy five senses uncontrolled, or else thy five senses having enjoyed their Vishaya will hurl thee down into Samsara.
श्रीब्रह्मदेव