
विसय-सुहइँ बे दिवहडा पुणु दुक्खहँ परिवाडि ।
भुल्लउ जीव म वाहि तुहुँ अप्पण खंधि कुहाडि ॥138॥
विषयसुखानि द्वे दिवसे पुनः दुःखानां परिपाटी ।
भ्रान्त जीव मा वाहय त्वं आत्मनः स्कन्धे कुठारम् ॥१३८॥
अन्वयार्थ : [विषयसुखानि] विषय-सुख [द्वे दिवसे] दो दिन के हैं, [पुनः] फिर [दुःखानां परिपाटी] दुःखों की परिपाटी है; [भ्रांत जीव] हे भोले जीव, [त्वं] तू [आत्मनः स्कंधे] अपने कंधे पर [कुठारम्] आप ही कुल्हाड़ी को [मा वाहय] मत चला ।
Meaning : To enjoy the sensual pleasures is to feed the family of pain. O foolish soul !' do not thyself strike thy shoulder with an axe.
श्रीब्रह्मदेव