+ मन इन्द्रियों का स्वामी -
पंचहँ णायकु वसिकरहु जेण होंति वसि अण्ण ।
मूल विणट्ठइ तरु-वरहँ अवसइँ सुक्कहिं पण्ण ॥140॥
पञ्चानां नायकं वशीकुरुत येन भवन्ति वशे अन्यानि ।
मूले विनष्टे तरुवरस्य अवश्यं शुष्यन्ति पर्णानि ॥१४०॥
अन्वयार्थ : [पंचानां नायकं] पाँचों (इन्द्रियों) के स्वामी (मन) को [वशीकुरुत] वश में करो [येन] जिससे [अन्यानि वशे भवंति] अन्य (पाँच इन्द्रियां) वश में हो जाती हैं; [तरुवरस्य] वृक्ष की [मूले विनष्टे] जड़ के नाश हो जाने से [पर्णानि] पत्ते [अवश्यं शुष्यंति] निश्चय से सूख जाते हैं ।
Meaning : Conquer the king of the five senses, that is, Manas (mind). By conquering it, all the five senses are conquered, as by cutting off the root of a tree, the whole tree becomes dried up.

  श्रीब्रह्मदेव