+ आत्म-ज्ञान बिना दुःख -
इहु सिव-संगमु परिहरिवि गुरुवड कहिँ वि म जाहि ।
जे सिव-संगमि लीण णवि दुक्खु सहंता वाहि ॥142॥
इमं शिवसंगमं परिहृत्य गुरुवर क्वापि मा गच्छ ।
ये शिवसंगमे लीना नैव दुःखं सहमानाः पश्य ॥१४२॥
अन्वयार्थ : [गुरुवर] हे तपोधन, [शिवसंगमं] आत्म-कल्याण को [परिहृत्य] छोड़कर [क्वापि] तू कहीं भी [मा गच्छ] मत जा, [ये शिवसंगमे] जो निजभाव में [नैव लीनाः] लीन नहीं हैं, उन्हें [दुःखं सहमानाः पश्य] दुःख को सहते हुए देख ।
Meaning : O disciple ! Do not give up the association of thy own Pure Atman to pursue sense-gratification; those who do not associate themselves with. their Aumans are subject to nothing but pain.

  श्रीब्रह्मदेव