
सर्वार्थसिद्धि :
उन रत्नप्रभा आदि भूमियोंमें, इस सूत्र-द्वारा क्रमसे नरकोंकी संख्या बतलायी गयी है। रत्नप्रभामें तीस लाख नरक हैं। शर्कराप्रभामें पचीस लाख नरक हैं। वालुकाप्रभामें पन्द्रह लाख नरक हैं। पंकप्रभामें दश लाख नरक हैं। धूमप्रभामें तीन लाख नरक हैं। तमःप्रभामें पाँच कम एक लाख नरक हैं और महातमःप्रभामें पाँच नरक हैं। रत्नप्रभामें तेरह नरकपटल हैं। इससे आगे सातवीं भूमि तक दो-दो नरक पटल कम हैं। इसके अतिरिक्त और विशेषता लोकानुयोगसे जान लेनी चाहिए। उन भूमियोंमें रहनेवाले नारकियोंमें क्या विशेषता है इस बातको बतलानेके लिए अब आगे सूत्र को कहते हैं- |
राजवार्तिक :
1-2. त्रिंशत्' आदि पदार्थों का परस्पर सम्बन्ध अर्थ में समास है। यथाक्रम कहने से क्रमशः संख्याओं का सम्बन्ध कर लेना चाहिए।
उन सातों पृथिवियों में कुछ बिल संख्थात योजन विस्तार वाले हैं और कोई असंख्यात योजन में विस्तार वाले हैं। जो संख्यात योजन विस्तार वाले हैं उनको संख्यात लाख योजन और असंख्यात विस्तार वालों को असंख्यात लाख योजन विस्तार वाला समझना चाहिये । ८४ लाख नरक बिलों में पाँच का भाग देने पर एक भाग प्रमाण बिल तो संख्यात योजन विस्तार वाले हैं और चार भाग प्रमाण बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं। बाहुल्य का प्रमाण नीचे लिखे अनुसार है। इन्द्रक गहराई नरक में कोस प्रमाण है और नीचे के नरकों में क्रमशः आधा-आधा कोस बढ़ती हुई सप्तम भूमि में इन्द्रक बिल की गहराई चार कोस प्रमाण हो जाती है। श्रेणीबद्ध बिलों की गहराई अपने इन्द्रक बिल की गहराई से तिहाई और अधिक है, प्रकीर्णकों की गहराई श्रेणी और इन्द्रक इन दोनों की मिली गहराई के बराबर है अर्थात् प्रथम रत्नप्रभा नरक के इन्द्रक बिल की मोटाई एक कोस की है । श्रेणीबद्ध बिलों की मोटाई एक कोस और एक कोस के तीन भाग है और पुष्पप्रकीर्णक बिलों की मोटाई दो कोस और एक कोस तीन भाग है -- इस प्रकार सर्वत्र जानना चाहिये। ये सब नरक बिल ऊंट आदि के समान अशुभ आकार वाले हैं तथा शोचन, रोदन, आक्रन्दन आदि अशुभ नाम जानने चाहिये । प्रथम नरक से तीसरे नरक तक के नारकियों उत्पत्ति के स्थान अनेक तो ऊँट के आकार के हैं, अनेक कुंभी घड़ियाल, कुस्थली, मुद्गर और नाड़ी आकार के हैं। चतुर्थ एवं पञ्चम नरकों नारकियों के जन्मस्थान कुछ तो गाय के आकार और कुछ हाथी, घोड़ा, धौंकनी, नौका कमलपुट सदृश हैं। छ्ठे और सातवें नरक के नारकियों के उत्पत्ति स्थान खेत, झालर, मल्लिका एवं भौंरे के आकार के हैं । इनके आक्रन्दन, शोचन, रोदन आदि अशुभ नाम हैं। पापकर्म के उदय से सीमन्त आदि नरकों में उत्पन्न होने वाले प्राणियों के लक्षण क्या हैं ? ऐसा पूछने पर सूत्र कहते हैं -- |