+ ग्रन्थ को कहने का प्रयोजन -
संसारहं भयभीयाहं, मोक्खह लालसियाहं
अप्पा-संबोहण-कयइ, कय दोहा एक्कमणाहं ॥3॥
है मोक्ष की अभिलाष अर भयभीत हैं संसार से
है समर्पित यह देशना उन भव्य जीवों के लिए ॥
अन्वयार्थ : [संसारहं भयभीयाहं] संसार से भयभीत और [मोक्खह लालसियाहं] मोक्ष की कामना रखने वालों के लिए, [अप्पासंबोहणकयइ] आत्मा का स्वरूप समझाने के लिए मैंने [एक्कमणाहं] एकाग्रचित्त से [कय दोहा] दोहों की रचना की है ।