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तिपयारो अप्पा मुणहि, परु अंतरु बहिरप्पु
पर झायहि अंतर-सहिउ, बाहिरु चयहि णिभंतु ॥6॥
बहिरातमापन त्याग जो बन जाय अन्तर-आतमा
ध्यावे सदा परमातमा बन जाय वह परमातमा ॥
अन्वयार्थ : [तिपयारो अप्पा मुणहि] आत्मा को तीन प्रकार जानो - [परु अंतरु बहिरप्पु] परमात्मा, अन्तरात्मा और बहिरात्मा । [अंतर-सहिउ] अन्तरात्मा होकर [पर झायहि] परमात्मा का ध्यान करो और [णिभंतु] भ्रान्ति-रहित होकर [बाहिरु चयहि] बहिरात्मा का त्याग कर दो ।