मिच्छा-दंसण-मोहियउ, परु अप्पा ण मुणेइ
सो बहिरप्पा जिण-भणिउ, पुण संसार भमेइ ॥7॥
मिथ्यात्वमोहित जीव जो वह स्व-पर को नहिं जानता
संसार-सागर में भ्रमे दृगमूढ़ वह बहिरातमा ॥
अन्वयार्थ : [मिच्छा-दंसण-मोहियउ] मिथ्यादर्शन से मोहित [परु अप्पा ण मुणेइ] परमात्मा को नहीं पहिचानता है, [सो बहिरप्पा जिण-भणिउ] उसे जिनेन्द्र देव ने बहिरात्मा कहा है । [पुण संसार भमेइ] वह पुनः पुनः संसार में परिभ्रमण करता है ।