+ अन्तरात्मा का स्वरूप -
जो परियाणइ अप्पु परु, जो परभाव चएइ
सो पंडिउ अप्पा मुणहिं, सो संसारु मुएइ ॥8॥
जो त्यागता परभाव को अर स्व-पर को पहिचानता
है वही पण्डित आत्मज्ञानी स्व-पर को जो जानता ॥
अन्वयार्थ : [जो परियाणइ अप्पु परु] जो जीव स्व-पर को पहचानकर, [जो परभाव चएइ] परभावों का त्याग कर देता है, [सो पंडिउ] वह पंडित है [अप्पा मुणहिं] आत्मा को जानता है । [सो संसारु मुएइ] वह संसार को छोड़ देता है ।