+ भेद-ज्ञान की प्रेरणा -
देहादिउ जे पर कहिया, ते अप्पाणु ण होहिं
इउ जाणेविणु जीव तुहूँ, अप्पा अप्प मुणेहिं ॥11॥
देहादि पर जिनवर कहें ना हो सकें वे आतमा
यह जानकर तू मान ले निज आतमा को आतमा ॥
अन्वयार्थ : [देहादिउ जे पर कहिया] देह आदि पदार्थ जो कि पर कहे गये हैं [ते अप्पाणु ण होहिं] वे आत्मा नहीं हो सकते [इउ जाणेविणु जीव तुहूँ] ऐसा जानकर तू [अप्पा अप्प मुणेहिं] अपने को आत्मा जान ।