+ आत्म-ज्ञानी ही निर्वाण पाता है -
अप्पा अप्पउ जइ मुणहि, तो णिव्वाणु लहेहि
पर अप्पा जउ मुणिहि तुहुँ, तहु संसार भमेहि ॥12॥
तू पायगा निर्वाण माने आतमा को आतमा
पर भवभ्रमण हो यदी जाने देह को ही आतमा ॥
अन्वयार्थ : [अप्पा अप्पउ जइ मुणहि] आत्मा को ही आत्मा समझेगा [तो णिव्वाणु लहेहि] तो निर्वाण प्राप्त करेगा और [पर अप्पा जउ मुणिहि] यदि पर को आत्मा मानेगा [तुहुँ तहु संसार भमेहि] तो तू संसार में परिभ्रमण करेगा ।