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इच्छारहिउ तव करहि, अप्पा अप्प मुणेहि
तउ लहु पावहि परमगई, पुण संसार ण एहि ॥13॥
आतमा को जानकर इच्छारहित यदि तप करे
तो परमगति को प्राप्त हो संसार में घूमे नहीं ॥
अन्वयार्थ : [इच्छारहिउ तव करहि] इच्छा-रहित होकर तप करे और [अप्पा अप्प मुणेहि] आत्मा को ही आत्मा समझे, [तउ लहु पावहि परमगई] तो शीघ्र ही परमगति को प्राप्त कर ले और [पुण संसार ण एहि] निश्चित रूप से पुनः संसार में न आवे ।