अह पुणु अप्पा णवि मुणहि, पुण्णु वि करइ असेसु
तउ वि णु पावइ सिद्धसुहु, पुणु संसार भमेसु ॥15॥
निज आतमा जाने नहीं अर पुण्य ही करता रहे
तो सिद्धसुख पावे नहीं संसार में फिरता रहे ॥
अन्वयार्थ : [अह पुणु अप्पा णवि मुणहि] यदि तू आत्मा को नहीं जानेगा और [पुण्णु वि करइ असेसु] केवल पुण्य ही करता रहेगा [तउ वि णु पावइ सिद्धसुहु] तो भी सिद्धसुख को नहीं पा सकेगा, [पुणु संसार भमेसु] पुनः पुनः संसार में ही भ्रमण करेगा ।