मग्गण-गुणठाणइ कहिया, ववहारेण वि दिट्ठि
णिच्छइणइ अप्पा मुणहु, जिय पावहु परमेट्ठि ॥17॥
मार्गणा गुणथान का सब कथन है व्यवहार से
यदि चाहते परमेष्ठिपद तो आतमा को जान लो ॥
अन्वयार्थ : [मग्गण-गुणठाणइ कहिया] मार्गणास्थान और गुणस्थान का कथन [ववहारेण वि दिट्ठि] व्यवहार दृष्टि से ही है, [णिच्छइणइ अप्पा मुणहु] निश्चयनय से आत्मा को पहिचान, [जिय पावहु परमेट्ठि] जिससे परमेष्ठी पद प्राप्त हो ।