गिहि-वावार परट्ठिआ, हेयाहेउ मुणंति
अणुदिणु झायहि देउ जिणु, लहु णिव्वाणु लहंति ॥18॥
घर में रहें जो किन्तु हेयाहेय को पहिचानते
वे शीघ्र पावें मुक्तिपद, जिनदेव को जो ध्यावते ॥
अन्वयार्थ : जो [गिहि-वावार परट्ठिआ] गृह-व्यापार में लगे हुए हैं, [हेयाहेउ मुणंति] हेय-उपादेय को पहिचानते हैं, [अणुदिणु झायहि देउ जिणु] रातदिन जिनदेव का ध्यान करते हैं, [लहु णिव्वाणु लहंति] वे शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त करते हैं ।