जिण सुमिरहु जिण चिंतवहु, जिण झायहु सुमणेण
सो झाहंतह परमपउ, लब्भइ एक्क-खणेण ॥19॥
तुम करो चिन्तन स्मरण अर ध्यान आतमदेव का
बस एक क्षण में परमपद की प्राप्ति हो इस कार्य से ॥
अन्वयार्थ : [सुमणेण] शुद्ध मन से [जिण सुमिरहु] जिनदेव का स्मरण करो, [जिण चिंतवहु] जिनदेव का ही चिन्तन करो और [जिण झायहु] जिनदेव का ही ध्यान करो, [सो झाहंतह] ऐसे ध्यान से [परमपउ, लब्भइ एक्क-खणेण] एक क्षण में परमपद प्राप्त होता है ।