जो जिणु सो अप्पा मुणहु, इह सिद्धंतहु सारु
इउ जाणेविण जोयइहु, छंडहु मायाचारु ॥21॥
सिद्धान्त का यह सार माया छोड़ योगी जान लो
जिनदेव अर शुद्धातमा में कोई अन्तर है नहीं ॥
अन्वयार्थ : [जो जिणु सो अप्पा मुणहु] जो जिन है वही आत्मा है, [इह सिद्धंतहु सारु] यही सम्पूर्ण सिद्धान्तों का सार है [छंडहु मायाचारु] सर्व मायाचार को छोड़कर [जोयइहु] हे योगी ! [इउ जाणेविण] इसे जान ।