+ आत्मा निश्चय से असंख्यात-प्रदेशी लोकप्रमाण, व्यवहार से शरीरप्रमाण -
सुद्ध-पएसह पूरियउ, लोयायास-पमाणु
सो अप्पा अणुदिण मुणहु, पावहु लहु णिव्वाणु ॥23॥
णिच्छइ लोयपमाण मुणि, ववहारेइ सुसरीरु
एहउ अप्पसहाउ मुणि, लहु पावहु भवतीरु ॥24॥
व्यवहार देहप्रमाण अर परमार्थ लोकप्रमाण है
जो जानते इस भाँति वे निर्वाण पावें शीघ्र ही ॥
परिमाण लोकाकाश के जिसके प्रदेश असंख्य हैं
बस उसे जाने आतमा निर्वाण पावे शीघ्र ही ॥
अन्वयार्थ : [सुद्ध-पएसह पूरियउ] शुद्ध-प्रदेशों से परिपूर्ण, [लोयायास-पमाणु] लोकाकाश-प्रमाण, [सो अप्पा अणुदिण मुणहु] ऐसी आत्मा की नित्य श्रद्धा करो, [पावहु लहु णिव्वाणु] ताकि शीघ्र निर्वाण प्राप्त हो ।
[णिच्छइ लोयपमाण मुणि] निश्चय से लोकाकाश-प्रमाण जानो और [ववहारेइ सुसरीरु] व्यवहार से स्व-शरीर-प्रमाण [एहउ अप्पसहाउ] ऐसे अपने आत्मा के स्वभाव का मनन करते हुए [लहु पावहु भवतीरु] शीघ्र संसार-सागर का किनारा प्राप्त हो ।