+ त्रिलोक-पूज्य जिन शुद्धात्मा ही है -
जो तइलोयहँ झेउ जिणु, सो अप्पा णिरु वुत्तु
णिच्छयणइ एमइ भणिउ, एहउ जाणि णिभंतु ॥28॥
त्रैलोक्य के जो ध्येय वे जिनदेव ही हैं आतमा
परमार्थ का यह कथन है निर्भ्रान्त यह तुम जान लो ॥
अन्वयार्थ : [जो तइलोयहँ झेउ जिणु] जो तीन लोक का ध्येय है, जिन है, [सो अप्पा णिरु वुत्तु] वह यह राग-द्वेष रहित आत्मा ही है [णिच्छयणइ एमइ भणिउ] निश्चयनय ऐसा ही कहता है [एहउ जाणि णिभंतु] इसको निसंदेह जान ।