+ आत्मानुभव बिना मिथ्यादृष्टि के व्रत-संयम द्वारा मोक्ष नहीं -
वय-तव-संजम-मूलगुण, मूढह मोक्ख णिवुत्तु
जाव ण जाणइ इक्क परु, सुद्धउ-भाउ-पवित्तु ॥29॥
जबतक न जाने जीव परमपवित्र केवल आतमा
तबतक न व्रत तप शील संयम मुक्ति के कारण कहे ॥
अन्वयार्थ : [जाव] जब तक [इक्क परु, सुद्धउ-भाउ-पवित्तु] एकमात्र परमशुद्ध पवित्र भाव को [ण जाणइ] नहीं जानता ऐसा [मूढह] मिथ्यादृष्टि [वय-तव-संजम-मूलगुण] व्रत, तप, संयम और मूलगुण होते हुए भी [मोक्ख णिवुत्तु] मोक्ष से निवृत्त है ।