जइ णिम्मल अप्पा मुणइ, वय-संजमु-संजुत्तु
तो लहु पावइ सिद्धि-सुहु, इउ जिणणाहह वुत्तु ॥30॥
जिनदेव का है कथन यह व्रत शील से संयुक्त हो
जो आतमा को जानता वह सिद्धसुख को प्राप्त हो ॥
अन्वयार्थ : [वय-संजमु-संजुत्तु] व्रत-संयम से युक्त होकर [जइ णिम्मल अप्पा मुणइ] यदि निर्मल आत्मा को ध्याता है [तो लहु पावइ सिद्धि-सुहु] तो शीघ्र ही सिद्धिसुख को पाता है [इउ जिणणाहह वुत्तु] ऐसा जिनेन्द्र देव ने कहा है ।