वयतव-संजमु-सीलु जिय, ए सव्वे अकइच्छु
जाव ण जाणइ इक्क परु, सुद्धउ भाउ पवित्तु ॥31॥
जबतक न जाने जीव परमपवित्र केवल आतमा
तबतक सभी व्रत शील संयम कार्यकारी हों नहीं ॥
अन्वयार्थ : [जाव] जब तक [जिय] यह जीव [इक्क परु सुद्धउ भाउ पवित्तु] एक परमशुद्ध पवित्र भाव को [ण जाणइ] नहीं जानता, [वयतव-संजमु-सीलु] व्रत, तप, संयम और शील [ए सव्वे अकइच्छु] ये कुछ भी कार्यकारी नहीं होते ।