वउ-तउ-संजमु-सील जिय, इय सव्वइ ववहारु
मोक्खह कारण एक्कु मुणि, जो तइलोयहु सारु ॥33॥
व्रत शील संयम तप सभी हैं मुक्तिमग व्यवहार से
त्रैलोक्य में जो सार है वह आतमा परमार्थ से ॥
अन्वयार्थ : [वउ-तउ-संजमु-सील] व्रत, तप, संयम एवं शील [जिय] हे जीव ! [इय सव्वइ ववहारु] यह तो सब व्यवहार है [मोक्खह कारण एक्क मुणि] मोक्ष का कारण एक को जान [जो तइलोयहु सारु] जो तीन लोक का सार है ।