+ आत्मा केवलज्ञान स्वाभावी है -
केवल-णाण-सहाउ, सो अप्पा मुणि जीव तुहुँ
जइ चाहहि सिव-लाहु, भणइ जोइ जोइहिँ भणिउँ ॥39॥
यदि चाहते हो मोक्षसुख तो योगियों का कथन यह
हे जीव! केवलज्ञानमय निज आतमा को जान लो ॥
अन्वयार्थ : [जइ चाहहि सिव-लाहु भणइ] यदि कहे हुए मोक्ष-सुख को चाहता है तो [केवल-णाण-सहाउ] केवलज्ञान-स्वभावी [सो अप्पा मुणि जीव तुहुँ] ऐसा तू आत्मा को जान, [जोइ जोइहिँ भणिउँ] हे योगी ! ऐसा योगियों ने कहा है ।