को सुसमाहि करउ को अंचउ, छोपु-अछोपु करिवि को वंचउ
हल सहि कलहु केण समाणउ, जहिँ कहिँ जोवउ तहिँ अप्पाणउ ॥40॥
सुसमाधि अर्चन मित्रता अर कलह एवं वंचना
हम करें किसके साथ किसकी हैं सभी जब आतमा ॥
अन्वयार्थ : [को सुसमाहि करउ] कौन समाधि करे? [को अंचउ] कौन पूजन करे? [छोपु-अछोपु करिवि को वंचउ] कौन छूआछूत करके अपने आप को ठगे? [हल सहि कलहु केण समाणउ] कौन किससे मैत्री करे? कौन किससे कलह करे? [जहिँ कहिँ जोवउ तहिँ अप्पाणउ] जहाँ कहीं देखो, वहाँ आत्मा ही है ।