+ अनात्मज्ञानी कुतीर्थों में भ्रमता है -
ताम कुतित्थइँ परिभमइ, धुत्तिम ताम करेइ
गुरुहु पसाएँ जाम णवि, अप्पा-देउ मुणेइ ॥41॥
गुरुकृपा से जबतक कि आतमदेव को नहिं जानता
तबतक भ्रमे कुत्तीर्थ में अर ना तजे जन धूर्तता ॥
अन्वयार्थ : [ताम कुतित्थइँ परिभमइ] तभी तक कुतीर्थों में भ्रमण करता है, [धुत्तिम ताम करेइ] धूर्तता भी तब तक ही करता है, [गुरुहु पसाएँ जाम] जब तक कि गुरु के प्रसाद से [णवि अप्पा-देउ मुणेइ] अपने आत्मदेव को नहीं जानता है ।