+ निज शरीर रुपी मंदिर में ही निश्चय से देव रहता है -
तित्थइँ देवलि देउ णवि, इम सुइकेवलि-वुत्तु
देहा-देवलि देउ जिणु, एहउ जाणि णिरुत्तु ॥42॥
श्रुतकेवली ने यह कहा ना देव मन्दिर तीर्थ में
बस देह-देवल में रहे जिनदेव निश्चय जानिये ॥
अन्वयार्थ : [तित्थइँ देवलि देउ णवि] देव तीर्थों और मन्दिरों में नहीं [इम सुइकेवलि-वुत्तु] ऐसा श्रुतकेवलियों ने कहा है [देहा-देवलि देउ जिणु] देहरूपी देवालय में देव रहता है, [एहउ जाणि णिरुत्तु] ऐसा निःसन्देह जानो ।