+ देवालय में साक्षात् देव नहीं है -
देहा-देवलि देउ जिणु, जणु देवलिहिँ णिएइ
हासउ महु पडिहाइ इहु, सिद्धे भिक्ख भमेइ ॥43॥
जिनदेव तनमन्दिर रहें जन मन्दिरों में खोजते
हँसी आती है कि मानो सिद्ध भोजन खोजते ॥
अन्वयार्थ : [देहा-देवलि देउ जिणु] जिनदेव तो इस देहरूपी देवालय में रहते हैं, [जणु देवलिहिँ णिएइ] परन्तु अज्ञानी उसे मन्दिरों में देखते हैं, खोजते हैं, [हासउ महु पडिहाइ इहु] मुझे यह देखकर बड़ी हँसी आती है कि [सिद्धे भिक्ख भमेइ] मानो सिद्ध, भिक्षा-हेतु भ्रमण करते हैं ।