+ ज्ञानी ही शरीररुपी मंदिर में परमात्मा को देखता है -
तित्थइ देउलि देउ जिणु, सव्वु वि कोइ भणेइ
देहा-देउलि जो मुणइ, सो बुहु को वि हवेइ ॥45॥
सारा जगत यह कहे श्री जिनदेव देवल में रहें
पर विरल ज्ञानी जन कहें कि देह-देवल में रहें ॥
अन्वयार्थ : [तित्थइ देउलि देउ जिणु] देव तीर्थों और मन्दिरों में है [सव्वु वि कोइ भणेइ] ऐसा सब कहते हैं, [देहा-देउलि जो मुणइ] देहरूपी देवालय में ही देव मानता है [सो बुहु को वि हवेइ] ऐसा ज्ञानी कोई विरला ही होता है ।