+ धर्मामृत के पान से अमरता -
जइ जर-मरण-करालियउ, तो जिय धम्म करेहि
धम्म-रसायणु पियहि तुहुँ, जिम अजरामर होहि ॥46॥
यदि जरा भी भय है तुझे इस जरा एवं मरण से
तो धर्मरस का पान कर हो जाय अजरा-अमर तू ॥
अन्वयार्थ : [जइ जर-मरण-करालियउ] यदि तू जरा-मरण से भयभीत है [तो जिय धम्म करेहि] तो हे जीव ! धर्म कर, [धम्म-रसायणु पियहि तुहुँ] तू धर्म-रसायन का पान कर [जिम अजरामर होहि] जिससे अजर-अमर हो सके ।