+ बाहरी क्रिया में धर्म नहीं -
धम्मु ण पढ़ियइँ होइ, धम्मु ण पोत्था-पिच्छियइँ
धम्मु ण मढिय-पएसि, धम्मु ण मत्था-लुंचियइँ ॥47॥
पोथी पढ़े से धर्म ना ना धर्म मठ के वास से
ना धर्म मस्तक लुंच से ना धर्म पीछी ग्रहण से ॥
अन्वयार्थ : [धम्मु ण पढ़ियइँ होइ] पढ़ने से धर्म नहीं होता, [धम्मु ण पोत्था-पिच्छियइँ] पुस्तक व पिच्छी से भी धर्म नहीं होता, [धम्मु ण मढिय-पएसि] मठ में रहने से भी धर्म नहीं होता, और [धम्मु ण मत्था-लुंचियइँ] केशलोंच करने से भी धर्म नहीं होता ।