आउ गलइ णवि मणु गलइ, णवि आसा हु गलेइ
मोहु फुरइ णवि अप्पहिउ, इम संसार भमेइ ॥49॥
आयु गले मन ना गले ना गले आशा जीव की
मोह स्फुरे हित ना स्फुरे यह दुर्गति इस जीव की ॥
अन्वयार्थ : [आउ गलइ णवि मणु गलइ] आयु गल जाती है, पर मन नहीं गलता, [णवि आसा हु गलेइ] आशा नहीं गलती [मोहु फुरइ णवि अप्पहिउ] मोह तो स्फुरित होता है, परन्तु आत्महित का स्फुरण नहीं होता [इम संसार भमेइ] इसी से संसार में भ्रमण होता है ।