जेहउ मणु विसयहँ रमइ, तिसु जइ अप्प मुणेइ
जोइउ भणइ हो जोइयहु, लहु णिव्वाणु लहेइ ॥50॥
ज्यों मन रमे विषयानि में यदि आतमा में त्यों रमे
योगी कहें हे योगिजन! तो शीघ्र जावे मोक्ष में ॥
अन्वयार्थ : [जेहउ मणु विसयहँ रमइ] जिस तरह यह मन विषयों में रमण करता है, [तिसु जइ अप्प मुणेइ] उस तरह आत्मा को जानने में लगे तो [जोइउ भणइ] योगी कहते हैं [हो जोइयहु] हे योगी [लहु णिव्वाणु लहेइ] शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त करे ।