+ शरीर को नरक समान जानो -
जेहउ जज्जरु णरय-घरु, तेहउ बुज्झि सरीरु
अप्पा भावहि णिम्मलउ, लहु पावहि भवतीरु ॥51॥
'जरजरित है नरक सम यह देह' - ऐसा जानकर
यदि करो आतम भावना तो शीघ्र ही भव पार हो ॥
अन्वयार्थ : [जेहउ जज्जरु णरय-घरु] जैसे नरकगृह जर्जर (आपत्तियों से पूर्ण) है [तेहउ बुज्झि सरीरु] वैसे ही शरीर को समझ, [अप्पा भावहि णिम्मलउ] निर्मल आत्मा की ही भावना कर, [लहु पावहि भवतीरु] ताकि शीघ्र संसार से पार हो ।