+ जगत के धंधों में मत उलझ -
धंधइ पडियउ सयल जगि, णवि अप्पा हु मुणंति
तहिँ कारणि ए जीव फुडु, ण हु णिव्वाणु लहंति ॥52॥
धंधे पड़ा सारा जगत निज आतमा जाने नहीं
बस इसलिए ही जीव यह निर्वाण को पाता नहीं ॥
अन्वयार्थ : [धंधइ पडियउ सयल जगि] सारे संसार के प्राणी अपने-अपने धंधों में फँसे हुए [णवि अप्पा हु मुणंति] आत्मा को नहीं पहिचानते, [तहिँ कारणि ए जीव फुडु] यही स्पष्ट कारण है कि वे जीव [ण हु णिव्वाणु लहंति] निर्वाण को नहीं प्राप्त करते ।