मणु-इंदिहि वि छोडियइ, बुहु पुच्छियइ ण कोइ
रायहँ पसरु णिवारियइ, सहज उपज्जइ सोइ ॥54॥
परतंत्रता मन-इन्द्रियों की जाय फिर क्या पूछना
रुक जाय राग-द्वेष तो हो उदित आतम भावना ॥
अन्वयार्थ : [मणु-इंदिहि वि छोडियइ] मन और इन्द्रियों से छुटकारा प्राप्त कर [बुहु पुच्छियइ ण कोइ] अधिक किसी से कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं है [रायहँ पसरु णिवारियइ] राग के प्रसार को रोकने से [सहज उपज्जइ सोइ] सहज ही आत्मभाव प्रकट होता है ।