देहादिउ जो परु मुणइ, जेहउ सुण्णु अयासु
सो लहु पावइ बंभु परु, केवलु करइ पयासु ॥58॥
शून्य नभ सम भिन्न जाने देह को जो आतमा
सर्वज्ञता को प्राप्त हो अर शीघ्र पावे आतमा ॥
अन्वयार्थ : [देहादिउ] देहादि को [जो परु मुणइ] जो पर मानता है [जेहउ सुण्णु अयासु] शून्य आकाश की भाँति, [सो लहु पावइ बंभु परु] वह शीघ्र परब्रह्म को प्राप्त करता है और [केवलु करइ पयासु] केवलज्ञान का प्रकाश करता है ।