+ अपने भीतर ही मोक्ष-मार्ग है -
णासग्गिँ अब्भिंतरहँ, जे जोवहिँ असरीरु
बाहुडि जम्मि ण संभवहिँ, पिवहिँ ण जणणी-खीरु ॥60॥
नासाग्र दृष्टिवंत हो देखें अदेही जीव को
वे जनम धारण ना करें ना पियें जननी-क्षीर को ॥
अन्वयार्थ : [णासग्गिँ अब्भिंतरहँ] नासाग्र दृष्टि से अपने अन्तर में [जे जोवहिँ असरीरु] अशरीरी (आत्मा) को देखते हैं, [बाहुडि जम्मि ण संभवहिँ] वे इस संसार में बार-बार जन्म नहीं पाएंगे, [पिवहिँ ण जणणी-खीरु] माँ का दूध नहीं पीते ।