+ आत्मानुभव का फल केवलज्ञान व अविनाशी सुख -
अप्पइँ अप्पु मुणंतयहँ, किं णेहा फलु होइ
केवल-णाणु वि परिणवइ, सासय-सुक्खु लहेइ ॥62॥
अपनत्व आतम में रहे तो कौन-सा फल ना मिले?
बस होय केवलज्ञान एवं अखय आनंद परिणमे ॥
अन्वयार्थ : [अप्पइँ अप्पु मुणंतयहँ] आत्मा से आत्मा को जानने पर [किं णेहा फलु होइ] कौन-सा फल नहीं मिलता? [केवल-णाणु वि परिणवइ] केवलज्ञान भी हो जाता है [सासय-सुक्खु लहेइ] शाश्वत सुख की भी प्राप्ति हो जाती है ।