
धण्णा ते भयवंत बुह, जे परभाव चयंति
लोयालोय-पयासयरु, अप्पा विमल मुणंति ॥64॥
हैं धन्य वे भगवन्त बुध परभाव जो परित्यागते
जो लोक और अलोक ज्ञायक आतमा को जानते ॥
अन्वयार्थ : [धण्णा ते भयवंत बुह] धन्य हैं वे भगवन्त ज्ञानी पुरुष [जे परभाव चयंति] जो सर्व परभावों का त्याग कर देते हैं और [लोयालोय-पयासयरु] लोकालोक को प्रकाशकर [अप्पा विमल मुणंति] निर्मल आत्मा का अनुभव करते हैं ।