
सागारु वि णागारु कु वि, जो अप्पाणि वसेइ
सो लहु पावइ सिद्धि-सुहु, जिणवरु एम भणेइ ॥65॥
सागार या अनगार हो पर आतमा में वास हो
जिनवर कहें अतिशीघ्र ही वह परमसुख को प्राप्त हो ॥
अन्वयार्थ : [सागारु वि णागारु कु वि] सागार हो या अनगार , [जो अप्पाणि वसेइ] जो कोई भी आत्मा में निवास करता है, [सो लहु पावइ सिद्धि-सुहु] वही शीघ्र मोक्ष-सुख को प्राप्त करता है, [जिणवरु एम भणेइ] ऐसा जिनवर कहते हैं ।