
विरला जाणहिँ तत्तु बुह, विरला णिसुणहिँ तत्तु
विरला झायहिँ तत्तु जिय, विरला धारहिँ तत्तु ॥66॥
विरले पुरुष ही जानते निज तत्त्व को विरले सुनें
विरले करें निज ध्यान अर विरले पुरुष धारण करें ॥
अन्वयार्थ : [विरला जाणहिँ तत्तु बुह] कोई विरला ज्ञानी ही तत्त्व को जानता है, [विरला णिसुणहिँ तत्तु] विरला ही तत्त्व को सुनता है, [विरला झायहिँ तत्तु जिय] विरला ही तत्त्व का ध्यान करता है, हे जीव ! और [विरला धारहिँ तत्तु] विरला ही तत्त्व को अपने हृदय में धारण करता है ।