
जो पाउ वि सो पाउ मुणि, सब्बु इ को वि मुणेहि
जो पुण्णु वि पाउ वि भणइ, सो बुह को वि हवेइ ॥71॥
हर पाप को सारा जगत ही बोलता - यह पाप है
पर कोई विरला बुध कहे कि पुण्य भी तो पाप है ॥
अन्वयार्थ : [जो पाउ वि सो पाउ मुणि] जो पाप है उसे तो पाप जानो, [सब्बु इ को वि मुणेहि] यह तो सब मानते हैं [जो पुण्णु वि पाउ वि भणइ] जो पुण्य को भी पाप कहता है [सो बुह को वि हवेइ] वह कोई विरला ज्ञानी ही होता है ।