+ सामान्य-विशेष वस्तु के कथन की प्रतिज्ञा -
सति धर्मिणि धर्माणां मीमांसा स्यादनन्यथा न्याय्यात्‌ ।
साध्यं वस्त्वविशिष्टं धर्मविशिष्टं ततः परं चापि ॥7॥
अन्वयार्थ : [अनन्यथा न्याय्यात्‌] (अविनाभाव) 'एक दूसरे के साथ ही होते हैं' इस न्यायानुसार [सति धर्मिणि धर्माणां] धर्मी (द्रव्य) के होने पर उसके धर्म (गुण या पर्याय) की [मीमांसा स्यात्] मीमांसा (मनन, विचार) की जा सकती है । इसलिये पहले [अविशिष्टं वस्तु] सामान्य वस्‍तु को [च] और [ततः परं] उसके बाद [धर्मविशिष्टं अपि] धर्मों से विशेषित वस्तु भी [साध्यं] सिद्ध करना चाहिये ।