+ युतसिद्ध मानने में दोष -
युतसिद्धत्वेप्येवं गणगुणिनोः स्यात्पृथक् प्रदेशत्वम्‌ ।
उभयोरात्मसमत्त्वाल्ल्क्षणभेदः कथं तयो र्भवति ॥12॥
अन्वयार्थ : युतसिद्ध मानने से गुण और गुणी (जिस में गुण पाया जाय ) दोनों ही के भिन्न-भिन्न प्रदेश ठहरेंगे । उस अवस्था में दोनों ही समान होंगें । फिर अमुक गुण है और अमुक गुणी है ऐसा गुण, गुणी का भिन्न-भिन्न लक्षण नहीं बन सकेगा ।

loading