+ सारांश -
तस्मादनेकदूषणदूषितपक्षाननिच्छता पुंसा ।
अनवद्यमुक्त्तलक्षणमिह तत्त्वं चानुमन्तव्यम् ॥14॥
अन्वयार्थ : इसलिये अनेक दूषणों से दूषित पक्षों को जो पुरुष नहीं चाहता है उसे योग्य है कि वह ऊपर कहे हुए लक्षणवाली निर्दोष वस्तु को स्वीकार करे । अर्थात्‌ सत्‌ स्वरूप, स्वतः सिद्ध, अनादि निधन, स्वसहाय और निर्विकल्प स्वरूप ही वस्तु को समझे ।